बड़ी सांसत है आजकल धर्म के रक्षकों की। धर्म और संस्कृति की रक्षा भी करनी है और पुरातनपंथी होने की छवि भी नहीं बनने देनी है। आजकल नये-नये नामों से संगठन खड़े करके बिगड़े लोगों को रास्ते पर लाने का फार्मूला निकाला है। पूरी कोशिश की जाती है कि नये संगठनों के कारनामों (गुण्डागर्दी) से नाम तो न खराब हो अलबत्ता चुनावों में फायदा जरूर हो। लेकिन क्या करें तब भी लोग समझ ही जाते हैं। अब देखिये कर्नाटक में अंदरूनी तौर पर बकायदा कामों का बंटवारा किया था कि इसमें धर्मांतरण के खिलाफ बजरंग दल काम करेगा तो श्रीराम सेना संस्कृति की रक्षा करेगी। लेकिन जनता है कि सबको घालेमेल किये दे रही है। मना करते-करते बेचारों की जबान सूख गई कि भैया, श्रीराम सेना से हमारा कोई संबंध नहीं है। लेकिन जनता भी अड़ ही गई है कि नहीं विचारधारा तो आपकी ही लागू कर रहे हैं। इसी तरह के मामले में इस बार तहलका हिन्दी में राजीव प्रताप रुडी ने कहा कि हमारा ऐसे तत्वों से कोई रिश्ता नहीं है और दिल्ली विश्वविद्यालय में एसएआर गिलानी पर थूकने वाले भी विद्यार्थी परिषद के लोग नहीं थे। गजब राजीव भैया, सारे अखबारों में 7, 8, 9 नवंबर 2008 को इस घटना की खबरें छपीं थीं, सबको झूठा साबित कर दिये हो। उस समय थूकने वालों को आपने तड़ से देशभक्त बता दिया था। अगर वे विद्यार्थी परिषद के नहीं थे तो डूसू अध्यक्ष नूपूर शर्मा उनकी पैरवी में क्यों आई थीं। फिर एवीबीपी के 20 कार्यकर्ताओं समेत उसको पुलिस ने क्यों पकड़ा था?
पर आपकी दिक्कत जायज है। भैया दो-दो काम एक साथ करने पड़ रहे हैं। अब जहां ज्यादा हल्ला मचे, बस वहीं अपनी पार्टी का कोई संबंध न होने का कहते जाना होगा। ध्यान रखिएगा, अब कहीं बार-बार ये कहते-कहते गुंडागर्दी की हर घटना पर सफाई मत देते जाइएगा...
Sunday, February 8, 2009
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