Friday, August 14, 2009

मीठा, पहली तारीख और मीठेपन की जरूरत और उसकी भरपाई

टीवी पर आजकल एक विज्ञापन बहुत चल रहा है—मीठा है खाना आज पहली तारीख है। मीठे की जरूरत हर जगह है। जिन्‍दगी के लिए भी और जिन्‍दगी के अहम हिस्‍से स्‍वाद के लिए भी। डॉक्‍टर बताते हैं कि मीठे से ताकत भी मिलती है। मीठा सबको चाहिए अमीर हो या गरीब। अमीर की तो बात ही अलग है। उसका मीठा उसके रोजमर्रे के खाने का हिस्‍सा होती है। आजकल का खाता-पीता मिडिल क्‍लास भी फिक्रप्रूफ है इस मामले में। शाम को मॉल या मिठाई की दुकान में ठीक-ठाक मीठा खा लेता है। पहली तारीख वाला जुमला असल में थोड़े तंगहाल मिडिल क्‍लॉस के लिए है। उसके लिए मीठे का मतलब है कम से कम पूरे परिवार के लिए दो-ढाई सौ रूपये खर्चना। इसके लिए उसे पहली तारीख का इंतजार तो करना ही पड़ेगा (भाई बड़ा जुल्‍म है ये तो...)।

होली की तरह जन्‍माष्‍टमी भी मिठाई वाला त्‍यौहार है। याद आता है कि जन्‍माष्‍टमी पर घर पर नारियल वाली और कोई और किस्‍म की बरफी बनती थी। जिसे जमने के बाद थाली में चाकू से काटने में बड़ा मजा आता था। क्‍या जीवन में जैसे मिठास कम हो रही है वैसे मिठाई का रोल भी कम होता जा रहा है। या बाजार ने मीठे को हड़प लिया है। पहले चंद रूपयों में घर में बन जाने वाली देसी और बेहद पौष्टिक बरफी की जगह अब चॉकलेट खाने के लिए पहली तारीख का इंतजार करना कुछ बताता है। यह बाजार को मीठाद्रोही बनाकर हमारे सामने लाता है। बाजार ने सिर्फ जिन्‍दगी से ही नहीं हमारे खान-पान से भी मिठास छीन ली है।

लेकिन जिन्‍दगी है तो मीठा होगा ही। इस तंगहाल मिडिल क्‍लॉस से मीठा बेशक थोड़ा दूर हो चला हो लेकिन गरीब तबके ने महंगे होते मीठे के अपने विकल्‍प ढूंढ़ लिये हैं। अगर आप बीड़ी-सिगरेट-पान के खोखे पर जाएं, चाय की थड़ी पर बैठें तो सबसे सामने मिठाइयों के मर्तबान नजर आ जाएंगे। यहां सब कुछ है। एक रूपये की बरफी, दो रूपये में पतीसा, बेसन और बूंदी का लड्डू, नारियल की बरफी भी है तो डोडे और बालूशाही की शक्‍लोसूरत वाली मिठाइयां भी। दिमाग में आएगा—अमां ये पान की दुकान है या हलवाई पहलवान। जाहिर है एक-दो-तीन रूपये में ये लजीज मिठाइयां असली मिठाइयों की क्‍लोन हैं। लेकिन हैं बहुत बढि़या चीजें। 60 से 100 रुपया रोजाना कमाने वाले की न तो पहली तारीख आती है और न उसकी औकात होती है दो-ढाई सौ की मिठाई या चॉकलेट खाने की। लेकिन मीठा तो उसे भी चाहिए। लिहाजा ये सस्‍ती मिठाइयां इसकी भरपाई करती हैं। इस तबके के लिए 5 रुपये में जलेबी खा लेना भी इसी का एक विकल्‍प है। असल में इस आबादी को हाड़तोड़ मेहनत के बाद खाने को तो कुछ खास मिलता नहीं है। और शरीर मेहनत के बाद खुराक मांगता है। इस कुछ भरपाई यह आबादी मीठा खाकर करती है। चाहे वह पान की दुकान पर एक रुपये की बरफी खाकर हो या 5 रुपये की जलेबी खाकर। यहां पर इसकी गुणवत्ता की बात बेमानी है। बात मीठेपन की है जो जरूरी है। सो वह न तो पहली तारीख का इंतजार करता है न रोकता-झींकता है। अपनी मुश्किल जिन्‍दगी को मीठे से थोड़ी देर ताजादम और प्रफुल्लित करके आगे बढ़ जाता है फिर से इस पूरी दुनिया के लिए खटने के लिए...। मीठापन शायद उसी के पास सबसे ज्‍यादा है। क्‍या आपको ऐसा नहीं लगता?

Sunday, July 5, 2009

इंडिया टीवी उर्फ सनसनाती इब्‍लाबू

कल एक पोस्‍ट पर इंडिया टीवी का कारनामा दिखाई पड़ा। भारतीय टीवी पत्रकारिता में इंडिया टीवी का ऐतिहासिक महत्‍व है। नुक्‍कड़-चौराहों पर बिकने वाली सस्‍ती मैगजीनों के र्शीषक को जिस खूबसूरती से इस टीवी ने खबर की शक्‍ल दी है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इसने आम लोगों की बोलचाल और लड़ाई-झगड़े की भाषा को पहली बार टीवी पर जगह दी। दिन-रात तालिबान से लेकर पाकिस्‍तान को जितना उसने हड़काया है इतना तो शायद बुश या ओबामा ने भी बेचारे पाकिस्‍तानियों को क्‍या हड़काया होगा। इसके तेवरों से तो यूपीए सरकार की विदेश नीति भी सहम गई है। ये इसी टीवी का कमाल है कि भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र के प्राचीन भारतीय ज्ञान को टीवी पर पेश किया गया। वैसे इस टीवी की ज्‍यादातर खबरें खबरें होती ही नहीं है, मतलब ज्‍यादातर एक्‍सक्‍लूजिव खबरें होती हैं। अभी माइकल जैक्‍सन की मौत पर खबर आई कि उसका पुनर्जन्‍म हो चुका है। फिर खबर आई कि माइकल नहीं उसका हमशक्‍ल मारा गया है। ऐसी कल्‍पनाशक्ति किसी भारतीय टीवी चैनल हो तो मुकाबला कर लें। बहरहाल इंडिया टीवी के बारे में चंद लाइनें पेश हैं इंडिया टीवी की ही शैली में। (आवाज की शैली ध्‍यान में रखकर इसका पठन-पाठन किया जाए)।
खबरदार इंडिया टीवी!
सनसनी मत फैलाओ!
टीवी दर्शकों का उल्‍लू मत बनाओ!
भारतीय दर्शक अब जाग रहा है!
होश में आओ इंडिया टीवी!
क्‍या इंडिया टीवी फिल्‍मी कलियां को पीछे छोड़ सकता है!
जानिए आज रात 11.30 बजे!

Thursday, July 2, 2009

लिब्राहन रिपोर्ट पर कुछ स्‍वीकारोक्तियां

- मैंने ढांचा तोड़ने के लिए नहीं कहा था।
- मैंने भी नहीं कहा था।
- मैंने भड़काऊ भाषण दिया था पर कहा मैंने भी नहीं था।
- अजी, मैं तो जेल भी हो आया। पर कहा मैंने भी नहीं था।
- उस वक्‍त हालात पर हमारा नियंत्रण नहीं था।
- कार्यकर्ता बेकाबू हो गये थे जनाब।
- देखिए, मैं तो उस वक्‍त रो रहा था।
- ये कांग्रेस की साजिश है।
- गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं मिलेगा।
- उस समय जो हुआ वह जनभावनाएं थीं।
- वह एक दुर्भाग्‍यशाली पल था।
- अतीत को भुला दिया जाना चाहिए।
- अरे महाराज, पांच साल कुर्सी तक तो पहुंचा दिया उस ढांचे ने। अब छोड़ि‍ए भी।

Wednesday, July 1, 2009

एमसीडी के 45,000 कर्मचारी कम नहीं 2,000 ज्‍यादा हैं

कल की खबर से एमसीडी में हडकम्‍प था कि 45,000 कर्मचारी अगर नहीं हैं तो उनकी तनख्‍वाह कौन ले रहा है? लेकिन आज अधिकारियों और सुपरवाइजरों ने वह कारनामा कर दिखाया जो युगों-युगों तक याद रखा जाएगा। आज दोपहर तक की हाजिरी के बाद पता चला है कि 45,000 कर्मचारी तो रातों-रात अचानक अवतरित हो ही गये हैं बल्कि 2,000 कर्मचारी ज्‍यादा पाये गये।
आज अगर आपने सड़कों पर गौर किया हो तो एमसीडी के ढेरों कर्मचारी काम करते हुए दिखाई दिये होंगे। दरअसल कल की खबर के बाद एमसीडी के सुपरवाइजर और अधिकारी परेशान थे कि फर्जी कर्मचारियों का मामला मुसीबत बन सकता है। सो आनन-फानन में कर्मचारी पैदा किये गये (खबर है कि कई नाते-रिश्‍तेदारों को और दिहाड़ी पर मजदूरों को रखकर संख्‍या पूरी की गई)। खैर 45,000 कर्मचारी तो पूरे हो गये लेकिन इस जल्‍दबाजी में कुछ ज्‍यादा ही इंतजाम हो गया और संख्‍या 45,000 गायब कर्मचारियों से ऊपर पहुंच गयी। अब एमसीडी के कर्ताधर्ता फिर परेशान हैं कि कल तक इतने ज्‍यादा कम थे अब ज्‍यादा हो गये। खबर है कि फिलहाल एक उच्‍च स्‍तरीय बैठक में पहले आपस में ही एक-दूसरे की गिनती की जा रही है ताकि कम से कम उच्‍चस्‍तर पर तो एक सही संख्‍या बताई जा सके। इधर सुपरवाइजरों और अधिकारियों के सामने समस्‍या यह है कि आज तो गिनती पूरी कर ली। लेकिन आगे क्‍या होगा...। सफाई कर्मचारी भी इस बार काफी खुश हैं। भ्रष्‍ठ सुपरवाइजरों और अधिकारियों की वजह से एक तो उन्‍हें काम ज्‍यादा करना पड़ता था और सारी मुसीबत भी उन्‍हीं पर आती थी। वैसे उनका यह भी कहना कि इस सबसे अब असली और पात्र लोगों को नौकरी मिलने की उम्‍मीद की जानी चाहिए।
पर एमसीडी में जो न हो जाए कम है। आगे देखते हैं क्‍या होगा। वैसे देखते रहिए जो भी होगा मजेदार ही होगा...

Friday, May 15, 2009

पार्टियों की गजब की मोर्चाबन्‍दी

पहला मोर्चा सबको ललचा रहा है। दूसरा मोर्चा अपने को बांधे रखने की कोशिश कर रहा है, तीसरा मोर्चा हालांकि अभी ठीक से बना नहीं है लेकिन इसके लोग तीसरे मोर्चे को छोड़कर हर किसी से बातें कर रहे हैं, चौथे मोर्चे की हालत पतली है लेकिन अच्‍छी कीमत के लिए पहले मोर्चे को खूब आंखे दिखा रहा है। कुलमिलाकर चारों मोर्चे कम से कम तीन मोर्चों के साथ हैं भी नहीं भी। कोई भी कभी भी किसी के भी साथ लग लेता है। अजब चक्‍कर है। आपको कुछ समझ आया...
आएगा कैसे। यही तो दुनिया के सबसे महान लोकतंत्र की खूबी है।

Thursday, April 30, 2009

लौकी हम भूलेंगे नहीं, कभी नहीं

जेल में अजमल कसाब को मिल रहा है तन्‍दूरी चिकन और वरुण गांधी को मिली लौकी। साहब भारी अन्‍याय है यह। देखिए इस देश में अब यह हालत हो गई है। एक आतंकवादी की खातिरदारी की जा रही है और हिन्‍दुओं की तरफ से बोलने वाले युवा नेता को प्रताड़ि‍त किया जा रहा है। अब यह भी कोई बात है। भई वरुण आम कैदी थोड़े थे जो उन्‍हें लौकी खिला कर टरका दिया गया। एटा में क्‍या कुछ और नहीं मिलता था। न, न, आप गलत समझ रहे हैं वरुण तो पक्‍के शाकाहारी हैं। अलबत्ता अच्‍छी शाक-सब्जियां भी तो होती हैं। फ्रेंच बीन, ब्रोकोली सबकुछ तो मिलता है हर जगह। पर मायावती के अफसरों को सिर्फ लौकी ही दिखाई दी। अरे और कुछ नहीं तो पनीर तो हर जगह मिल जाता है। अगर एकाध दिन शाही पनीर खिला देते तो यूपी सरकार के खजाने में कौन सी कमी आ जाती। और भई खानपान की आदतों की क्‍या बात है। अब अगर कोई जापान का आदमी हमारे देश में पकड़ा जाए तो हम उसे मछली थोड़े ही खिलाएगे। खाना है तो दाल रोटी खाओ वरना प्रभु के गुण गाओ। हां, तो वरुण के साथ हुआ यह अन्‍याय भुलाया नहीं जाएगा। लौकी हम तुझे भूलेंगे नहीं। याद रखेंगे, याद रखेंगे....

Monday, April 20, 2009

शेर को वॉलीवाल के नेट के पीछे देखा है आपने कभी

गुजरात के शेर नरेन्‍द्र मोदी ने गुजरात में एक जनसभा में अपना भाषण वॉलीवाल के नेट के पीछे खड़े होकर दिया (वीडियो देखें)। वैसे फिर भी जूता पड़ सकता है इसलिए अपने कारनामों के हिसाब से सर्कस वाला लंबा चौड़ा जाल लगवाते तो सुरक्षा की पक्‍की गारंटी रहती। भय हो, भय हो, जूते का...

Saturday, April 18, 2009

दिल्‍ली की एक चुनावी सभा का आंखों देखा हाल

दिल्‍ली में चुनावी माहौल धीरे-धीरे गरमा रहा है। कल भाजपा की चुनावी सभा दिख गई तो अपने आप कदम उधर ही बढ़ चले। वक्‍ता आग उगल रहे थे (सुप्रीम कोर्ट के डर से वरुण जितनी नहीं) लेकिन मेरी तो हर बात पर हंसी छूट रही थी। चलिए आपको भी बताता हूं वहां का आंखों देखा हाल...
मंच पर 7-8 सज्‍जन विराजमान थे। संयोग से कोई भी 80-90 किलो से कम का नहीं था बल्कि कई तो सैकड़ा पार करने का दम रखते थे। जिस समय मैं पहुंचा एक सरदारजी मंच पर वीररस की कविता दहाड़... मेरा मतलब है सुना रहे थे। लगता था फुटपाथ पर बिकने वाली सस्‍ती शायरी की किताबों से तुकबन्दियां चुरा कर लाये थे। उन्‍हें रामसेतू से बड़ा लगाव था, बा‍त-बात पर रामसेतू का राग अलाप देते थे। इतनी कर्कश आवाज में चीख रहे थे कि लगता था कि हिन्‍दुओं पर होने वाले सारे अत्‍याचार का गुस्‍सा आज बेचारे माईक पर उतारे दे रहे हैं। उन्‍हें इसका भी काफी कष्‍ट था कि लोगों ने राम के अस्तित्‍व पर ही सवाल खड़ा कर दिया। इसके लिए करुणानिधि जी की बायीं आंख पर भी व्‍यंग्‍य करने से नहीं चूके। राम के अस्तित्‍व पर सवाल के जवाब में उन्‍होंने जो तर्क दिया उससे बड़े-बड़े नृतत्‍वशास्‍त्री भी चारो खाने चित्त हो सकते हैं। उन्‍होंने अपनी कविता में कहा कि आदमी के बाप का नाम भी तो माथे पर नहीं लिखा होता लेकिन वो किसी को तो अपना बाप कहता ही है ना, फिर राम के होने का सबूत क्‍यों मांगा जा रहा है। वाह-वाह क्‍या बात है, मेरी हंसी सुनकर आसपास के लोग मुझे गौर से देखने लगे। इस तर्क पर इस इलाके के लोकसभा प्रत्‍याशी ने खूब देर तक तालियां बजाईं। जय हो...
इसके बाद कई लोगों ने बात रखी जिसमें यही बात दोहराई गई कि देश को आगे बढ़ाना है, हिन्‍दुओं का खोया मान-सम्‍मान वापस लौटाना है, राष्‍ट्रवाद बढ़ाना है। उम्‍मीदवार को इलाके के दुकानदारों ने काफी पैसा इकट्ठा करके दिया। लेकिन राष्‍ट्रवाद और हिन्‍दुत्‍व के बीच में एक बनिये ने इस सभा का असली मकसद यानी एजेण्‍डा एकदम साफ-साफ रख दिया। वह बोला भईया देखो बाकी तो सब बात ठीक है लेकिन सारी चीजें चलती हैं रोजी-रोटी से। हमारी रोजी-रोटी है दुकान। अब मार्केट में लाईट नहीं आएगी, पानी नहीं आएगा, दफ्तरों और थानों में हमारी बात नहीं सुनी जाएगी तो फिर क्‍या फायदा है किसी के जीतने का? अब तो उम्‍मीदवार बिछ गये (नोटों की गड्डियां जो मिली थीं) कि आधी रात को आप लोगों की सेवा में हाजिर रहूंगा। इसके बाद नारेबाजी थोड़ी ही हुई(चूंकि नारे लगवाने वाले सज्‍जन अपनी तोंद से खासे परेशान दिख रहे थे) लिहाजा हिन्‍दुत्‍व और राष्‍ट्रवाद बचाने के आह्वान के साथ सभा जल्‍दी से समाप्‍त कर दी गयी।

Tuesday, April 14, 2009

अरे भई ऐसे कैसे होगी संस्‍कृति की रक्षा।

कर्नाटक के ''लौह'' गृहमंत्री हैं वी.एस. आचार्य। मैंगलौर पब हमले पर संस्‍कृति की रक्षा पर काफी दहाड़ लगायी थी। लेकिन कल एक कार्यक्रम में सर पर पांव रखकर ऐसा भागे कि लोगों को सिर्फ धूल उड़ती दिखाई दी। धूल बैठी तो मंत्रीजी गायब। बेचारे उनके सुरक्षाकर्मी भी हैरान-परेशान। बाद में उस सभा के आयोजकों ने उन्‍हें वाहन में बैठाकर मंत्रीजी तक पहुंचाया।
दरअसल चुनावों की मारामारी में एसी कक्षों के आदी नेता पहले ही काफी परेशान हैं। इसी हालत में आचार्यजी भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठक को संबोधित करने निकले तो रास्‍ते में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बैठक को गलती से अपनी बैठक समझ बैठे। खैर कांग्रेस वालों ने आदर-सत्‍कार किया, पानी पिलाया, कुर्सी दी। फिर मंत्रीजी ने अपना राग अलापना शुरू किया। अपनी उपलब्धियां गिनाने लगे तो कांग्रेसी धैर्यपूर्वक सुनते रहे, लेकिन जब कांग्रेस की बखिया उधेड़ने लगे तो कांग्रेसियों का भी आदिम गुंडा खून खौल गया। उसके बाद तो मंत्रीजी हक्‍के-बक्‍के। कुछ न सूझा तो बस सरपट भाग चले। कर्नाटक के नौजवान लड़के-लड़कियों और अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ आग उगलने वाले माननीय गृहमंत्रीजी ऐसा भागे कि अपने सुरक्षाकर्मियों तक को छोड़ गये। गृहमंत्री अपनी सेनाओं और दलों की फौज से इक्‍का-दुक्‍का नौजवानों को तो धमका सकते हैं पर अपने बराबर के गुंडों के सामने एक सेकेंड भी नहीं टिक पाये। अरे भई ऐसे कैसे होगी संस्‍कृति की रक्षा।

Wednesday, April 1, 2009

विश्‍व के शीर्ष नेताओं ने गूगल से ब्‍लॉगर सेवा को बंद करने का अनुरोध किया

इंग्‍लैंड में जुटे दुनिया के शीर्ष जी-20 देशों के नेताओं ने पहले दिन एक स्‍वर से गूगल की ब्‍लॉगर सेवा बंद करने पर सहमति जतायी। पता चला है कि पहले ही दिन की बैठक में अचानक यह मसला बातचीत के केंद्र में आ गया। चीन ने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि ब्‍लॉग लेखन के जरिए उसके देश में दुष्‍प्रचार (मानवाधिकारों के हनन का) किया जा रहा है। इससे सरकार के कामकाज और उसकी आलोचना भी लोगों के बीच तेजी से फैलती जा रही है। ब्राजील के राष्‍ट्रपति ने कहा कि उनके देश में बेरोजगारों ने ब्‍लॉग के जरिए सरकार विरोधी अभियान चला रखा है। भारत के प्रधानमंत्री ने भी इस मसले पर सहमति जताते हुए कहा कि उनके यहां राजनीतिक विरोधियों (जैसे छत्तीसगढ़ में एक डॉक्‍टर आदि) को जेल में ठूंसने के खिलाफ ब्‍लॉग के जरिए प्रचार किया गया। साथ ही नेताओं, मीडिया संस्थानों/दिग्‍गजों, राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ ब्‍लॉग पर जमकर लिखा और पढ़ा जा रहा है। उन्‍होंने भारत के शीर्ष हिन्‍दी अखबार की महिला संपादक समेत न्‍यायपालिका के शीर्ष निकायों द्वारा हाल ही में ब्‍लॉग के बढ़ते खतरे की चिंताओं का जिक्र भी किया। तुर्की के राष्‍ट्रपति ने कहा कि कई देशों में ब्‍लॉगरों ने ईशनिंदा या धार्मिक कट्टरता के खिलाफ बोलने के लिए ही ब्‍लॉग का सहारा लिया। लगभग सभी देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्षों ने एक स्‍वर में चिंता जताई कि ब्‍लॉग के जरिए बिना कोई पैसा खर्च किए आम लोगों को अपनी बात रखने का औजार दे देना चिंतनीय बात है। इससे लोगों को सरकार, नेताओं, अधिकारियों, पार्टियों, धार्मिक नेताओं (और धर्म पर टिकी चुनावी पार्टियों) के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का मौका मिलेगा जो मौजूदा वर्ल्‍ड सोशल आर्डर (विश्‍व सामाजिक व्‍यवस्‍था) के लिए सही नहीं है। सबसे अंत में ओबामा ने इस पूरे मुद्दे को अमेरिका का पुरजोर समर्थन देते हुए कहा कि ब्‍लॉग ने अमेरिकी प्रशासन के लिए भी मुसीबत खड़ी की हैं। उन्‍होंने कुछ दिन पहले की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि बुश पर इराक में जूता फेंकने की घटना ब्‍लॉग के जरिए ही चंद मिनटों में दुनिया भर में पहुंच गई थी। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका इराक की भांति दुनिया भर में लोकतंत्र स्‍थापित करने के अपने मिशन में जुटा रहेगा, इसलिए ऐसी घटनाएं भविष्‍य में हो सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि अब ऐसे संचार साधनों पर लगाम कसी जाए जो अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के नाम पर कुछ भी दिखा देने को आजाद हैं। उन्‍होंने कहा कि वे जी-20 के नेताओं की भावना से गूगल कंपनी को वाकिफ कराएंगे और उनसे ब्‍लॉगर सेवा तत्‍काल बंद करने को कहेंगे।

Sunday, February 8, 2009

हमारा....से कोई संबंध नहीं है

बड़ी सांसत है आजकल धर्म के रक्षकों की। धर्म और संस्‍कृति की रक्षा भी करनी है और पुरातनपंथी होने की छवि भी नहीं बनने देनी है। आजकल नये-नये नामों से संगठन खड़े करके बिगड़े लोगों को रास्‍ते पर लाने का फार्मूला निकाला है। पूरी कोशिश की जाती है कि नये संगठनों के कारनामों (गुण्‍डागर्दी) से नाम तो न खराब हो अलबत्‍ता चुनावों में फायदा जरूर हो। लेकिन क्‍या करें तब भी लोग समझ ही जाते हैं। अब देखिये कर्नाटक में अंदरूनी तौर पर बकायदा कामों का बंटवारा किया था कि इसमें धर्मांतरण के खिलाफ बजरंग दल काम करेगा तो श्रीराम सेना संस्‍कृति की रक्षा करेगी। लेकिन जनता है कि सबको घालेमेल किये दे रही है। मना करते-करते बेचारों की जबान सूख गई कि भैया, श्रीराम सेना से हमारा कोई संबंध नहीं है। लेकिन जनता भी अड़ ही गई है कि नहीं विचारधारा तो आपकी ही लागू कर रहे हैं। इसी तरह के मामले में इस बार तहलका हिन्‍दी में राजीव प्रताप रुडी ने कहा कि हमारा ऐसे तत्‍वों से कोई रिश्‍ता नहीं है और दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में एसएआर गिलानी पर थूकने वाले भी विद्यार्थी परिषद के लोग नहीं थे। गजब राजीव भैया, सारे अखबारों में 7, 8, 9 नवंबर 2008 को इस घटना की खबरें छपीं थीं, सबको झूठा साबित कर दिये हो। उस समय थूकने वालों को आपने तड़ से देशभक्‍त बता दिया था। अगर वे विद्यार्थी परिषद के नहीं थे तो डूसू अध्‍यक्ष नूपूर शर्मा उनकी पैरवी में क्‍यों आई थीं। फिर एवीबीपी के 20 कार्यकर्ताओं समेत उसको पुलिस ने क्‍यों पकड़ा था?
पर आपकी दिक्‍कत जायज है। भैया दो-दो काम एक साथ करने पड़ रहे हैं। अब जहां ज्‍यादा हल्‍ला मचे, बस वहीं अपनी पार्टी का कोई संबंध न होने का कहते जाना होगा। ध्‍यान रखिएगा, अब कहीं बार-बार ये कहते-कहते गुंडागर्दी की हर घटना पर सफाई मत देते जाइएगा...

Thursday, January 1, 2009

नया वर्ष जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम!!!

नया वर्ष
नयी यात्रा के लिए उठे
पहले कदम के नाम,
सृजन की नयी परियोजनाओं के नाम,
बीजों और अंकुरों के नाम,
कोंपलों और फुनगियों के नाम
उड़ने को आतुर शिशु पंखों के नाम

नया वर्ष तूफानों का आह्वान करते
नौजवान दिलों के नाम
जो भूले नहीं हैं
प्‍यार करना
उनके नाम जो भूले नहीं हैं
सपने देखना,
संकल्‍पों के नाम
जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम!!!


नववर्ष की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। ये पंक्तियां मेरी नहीं हैं लेकिन मुझे काफी अच्‍छी लगती हैं।