Tuesday, October 28, 2008

हमारे मन का दीप खूब रौशन हो और उजियारा सारे जगत में फ़ैल जाए

हमारे मन का दीप खूब रौशन हो और उजियारा सारे जगत में फ़ैल जाए इसी कामना के साथ दीपावली की आप सबको बहुत बहुत बधाई। अंतर्जगत के दिए में ज्ञान के तेल से तर्कों की बाती जले ताकि दुनिया से अँधेरा और उसकी नापाक ताकतें दूर हो और सही विचार की रोशनी में मानवता का नया अध्‍याय लिखा जा सकें असली दीवाली उस दिन मनायी जाएगी।

Tuesday, October 21, 2008

कल अशफाक का जन्मदिवस है

कल यानि २२ अक्टूबर को काकोरी के वीर अशफाकुल्ला खान का जन्मदिवस है। अशफाक हमारे देश में क्रांतिकारियों की पहली पीढी के नेता कहे जा सकते है। अंग्रेज़ी हुकूमत के तलवार के ज़ोर पर शासन करने को नामंजूर करने वाले नौजवानों में से थे अशफाक। वे अंग्रेजो से देश को आज़ाद कराने के साथ ही समाज में व्याप्त असमानता को भी दूर करने का ख्वाब देखा करते थे। उनका पक्का यकीन था कि बिना ऊच-नीच, अमीर-गरीब कि खाई को दूर किए बिना आज़ादी का कोई मतलब नहीं है। उनका यह भी मानना था कि इस लडाई को आपस के रंग, जाति, धर्म आदि भेदभाव भुलाये बिना जीता ही नहीं जा सकता। उनका जीवन ख़ुद सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक था। कट्टर आर्यसमाजी रामप्रसाद बिस्मिल के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी। वे एक अच्छे शायर भी थे। शहीद अशफाकुल्ला का फाँसीघर से अन्तिम संदेश बहुत कुछ आज भी मायने रखता है।


"हिन्दुस्तानी भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय को मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो! व्यर्थ आपस में न लड़ो।... "


उनका एक शेर यह है...


कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है,


रख दे कोई ज़रा सी, खाके वतन कफ़न में।

Wednesday, October 8, 2008

बोलो जय श्री राम ! जय श्री राम !

वैसे तो श्रीराम का टमाटर-आलू-प्याज़ से कोई रिश्ता नज़र नहीं आता लेकिन मैंने सोचा जब भाई लोगों ने श्रीराम को राजनीति से इतना जोड़ दिया है तो उनका टमाटर-आलू-प्याज़ से भी कोई न कोई रिश्ता ज़रूर होगा। हमारे यहाँ वैसे भी श्रीराम बड़े काम आते हैं। जब राजनेताओ को चुनावी गंगा पार करनी होती है तो उन्हें केवट की नहीं श्रीराम की ज़रूरत पड़ती है। वह पॉलिटिक्स के खेवनहार है। कोई संकट आ जाए, महंगाई बढ जाए, जनता जीना हराम कर दे, बस प्रभु श्रीराम को याद करना काफी है। सारे संकट चुटकी बजाते हल हो जायेंगे। आजकल तो श्रीराम के परमभक्त 'बजरंगी' भी राजनेताओं की मदद के लिए साक्षात पृथ्वी पर उतर आए हैं। किसी भी अशोक वाटिका में तोड़-फोड़ मचवानी हो, विरोधियों को हिलाना-डुलाना हो, बजरंगी हाज़िर हैं। खैर आजकल फ़िर से टमाटर बड़े महंगे हो गए हैं। और भी कई चीजे महंगी हो गयी है, सो लगता है अब श्रीराम का जल्द ही पदार्पण होगा। हमारे नेताओं की मिसाल दुनिया में मिलना मुश्किल है। असली-नकली मुद्दों को ऐसे गडमड करते है कि जनता हैरान! असली मुद्दे तो चूहे के बिल में समा जाते है और नकली मुद्दे मच्छर बनके हमारे कान में भनभनाकर जीना हराम कर देते है। हम भी राजनेताओं के पीछे-पीछे नकली मुद्दों यानी मच्छरों को ख़त्म करने के लिए अपनी गत्ते की तलवार लेकर पिल पड़ते है। बहरहाल आज टमाटर लेते वक्त श्रीराम को याद करें और दशहरे के मेले जय श्रीराम के रणभेरी नारों के बीच टमाटर के ताजा भाव को याद करें। बाकि त्यौहार का दिन है हंसिये-हंसायीयें, खाईये-खिलाईये और एक बेहद अचर्चित कवि मनबहकी लाल की ये कविता गुनगुनाईये...

जय श्री राम ! जय श्री राम !

आलू-प्याज़ के इतने दाम?
जय श्री राम ! जय श्री राम !


बच्चा-बच्चा राम का होवे

अपना आपा कभी न खोवे

आसमान छूती महंगाई।
चाहे कर दे काम-तमाम !
बोलो जय श्री राम ! जय श्री राम !

बिना नमक के खाओ भात
प्याज़ तामसी है साक्षात
कूव्वत होय मलीदा चापो
हारे को केवल हरिनाम !
बोलो जय श्री राम ! जय श्री राम !

जपो स्वदेशी ! जपो स्वदेशी !
पूँजी लाओ रोज़ विदेशी !
देशी और विदेशी जोंके
चूसे जनता को ज्यों आम !
बोलो जय श्री राम ! जय श्री राम !

Sunday, October 5, 2008

ये आरक्षण-आरक्षण क्या है?

३७,००० रुपया महीना कमाने वाला पिछड़ा कैसे है? ये सवाल मेरे मित्र कुमार विकल को विकल किए हुए था। बड़े चिंतित स्वर में बोले, ये बात तो समझ से परे है। आरक्षण विकास की दौड़ में पिछड़ गए समाज के निचले तबके के लिए था। अगर सरकार साढ़े चार लाख हर साल कमाने वाले को गरीब मानती है तो अमीर तो सिर्फ़ टाटा-अम्बानी-बिडला हुए। मैंने कहा, प्यारे यह भारतीय राजनीती का कमाल है। इस लोकतंत्र में वोट की ताक़त नोट की ताक़त की पासंग भी नहीं है। जरा देखो इस आय सीमा बढने की जहाँ कांग्रेस से लेकर पासवान, शरद यादव, उदितराज और मायावती ने तारीफ की है वहीँ किसी ने इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। कुल मिलाकर सब क्रीमी लेयर बढाये जाने के पक्ष में है। तर्क दिया जा रहा है की इससे ज्यादा लोग आरक्षण का फायदा उठा पाएंगे। विकल ने मुझे रोककर कहा, लेकिन दलित-पिछडी आबादी के गरीब तो वो माने जायेंगे न जिन्हें अर्जुनसेंगुप्ता कमेटी में देश के ८४ करोड़ लोगो द्वारा २० रुपया रोज़ कमाने वाला बताया गया था। फ़िर क्रीमी लेयर बढाने की वजह? मैंने कहा यह सही है की दलित-पिछडी आबादी के ज्यादातर गरीब २० रुपया रोज़ कमाने वाले ही है, लेकिन दरअसल ये दलित-पिछडी राजनीती की असल ताक़त नहीं है। असल ताक़त हैं इसी आबादी के उभर कर आए नेता। जो इस आबादी को भेड़ की तरह हांक कर वोट डलवा कर अपना उल्लू सीधा करती है। इन उभरे गली-मोहल्लो के नेताओं की ५-७ सालों में तिमंजिला मकान खड़े हो गए हैं, पजेरो जैसी ऊँची गाड़ी रखते है, हाथ और गले सोने के आभूषण होते है और बच्चे इंजिनीअर या मेडिकल की पढ़ाई कर रहे होते हैं। यही तबका बी एस पी , पासवान वगेरह की ताक़त है। सो इन पार्टियों के नेता इनके लिए चिंतित तो होंगे ही। आरक्षण का फायदा अच्छी हैसियत वाला दलित-पिछड़ा ही उठा सकता है। तुम क्या सोचते हो झाडू लगाने वाले छोटे-मोटे काम करने वाले बेचारे क्या खाकर आरक्षण का फायदा उठाएंगे। महान दलित चिन्तक चंद्रभान प्रसाद तो इसी बमुश्किल २ परसेंट खाते-पीते तबके के विकास को पुरी दलित आबादी के विकास मानते है। उनका कहना है जब कुछ दलित पूंजीपति बनेंगे तभी दलित-पिछडो का उद्धार होगा। तो मियां ये सारा खेल उस खाते-पीते दलित-पिछडे तबके और उनकी आने वाली पीढियों के लिए किया जा रहा है। असली गरीब तो अभी बेचारा इन्ही के पीछे घुमने के लिए मजबूर है। और तब तक घूमेगा जब तक वो दुनिया को अमीर और गरीब में बांटकर देखना नहीं सीख जाएगा। विकल को आरक्षण का खेल कुछ समझ में आया।