Wednesday, September 24, 2008

क्या..?? भगतसिंह जन्मशताब्दी वर्ष समाप्त होने वाला हैं!

भगतसिंह जन्मशताब्दी वर्ष बीत गया और राष्ट्रिय पैमाने पर कोई आयोजन नहीं हुआ। सरकार ने जैसे-तैसे औपचारिकता निभा दी। भला हो कुछ स्वतंत्र छात्र-नौजवान संगठनो का जो कभी दिल्ली की बसों में तो कभी दिल्ली, लखनऊ, अलाहाबाद, गोरखपुर और पंजाब जाने वाली ट्रेनों में पर्चे बांटे, गीत गाते, नारे लगाते दिख जाते थे। वरना सरकार की कृपा से तो यह ऐतिहासिक मौका चुपचाप निकल जाता। ये संगठन smritisankalp के ब्लॉग के ज़रिये भी क्रांतिकारियों के विचारों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। जन्मशताब्दी वर्ष के समापन कार्यक्रम को लखनऊ का राहुल फाउंडेशन भी अपने अंदाज़ में मना रहा हैं। २६ तारीख को त्रिवेणी ऑडिटोरियम में शाम ५.३० बजे एस इरफान हबीब की किताब 'बहरों को सुनाने के लिए' का विमोचन होने जा रहा हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर हम सबको ज़रूर क्रांतिकारियों को श्रीधांजलि देने की लिए ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होना चाहिए।

Friday, September 19, 2008

गुरु डाल-डाल, चेले पात-पात

हैदराबाद के जवाहरलाल नेहरू टेक्नीकल यूनिवर्सिटी के शिक्षक आजकल अपने छात्रों से परेशान हैं। वजह है की गुरुओं ने जो सिखाया उसे छात्रों ने इतनी अच्छी तरह सीखा कि अब गुरुओं की नाक में दम आ गया है। असल में जे एन टी उ के कंप्यूटर और आई टी के छात्र अपने लिए तैयार प्रश्न-पत्र विश्वविध्यालय के सर्वर से ही उड़ा लेते हैं यानी हेक कर लेते हैं। अब शिक्षक हैरान-परेशान हैं कि करें तो क्या करें! ये छात्र इतने तेज़ है कि कालेज प्रशाशन और टीचरों की लाख कोशिशों के बावजूद प्रश्न-पत्र हेक कर ले गए। अपने छात्रों की मेधा देखकर टीचरों के पसीने छूट गए। कुछ इसे आजकल के छात्रों के गिरते नैतिक मूल्य कह सकते हैं पर एक बात तो साफ़ हैं कि ये छात्र अपने गुरुओं से आगे बढ़ गए हैं। इससे यह भी पता चलता हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली कितनी बोझिल हो गयी है। परिक्षा सिर्फ़ रटंत विद्या बन गयी है। और प्रैक्टिकल नोलेज के हिसाब से अनुपयोगी भी। याद करिए अपनी परिक्षा के समय हमारा कितना खून सूखता था। यह शिक्षा जिज्ञासु बच्चों को हतोत्साहित करने वाली हैं। ज्यादा सवाल पूछने वाला छात्र अक्सर टीचरों का अप्रिय बन जाया करता है। असल में यह शिक्षा-प्रणाली सिर्फ़ क्लर्क पैदा करने के लिए बनायी गयी थी। जे एन टी उ के छात्रों का प्रशन-पत्र हेक करना सीधे-सीधे इस प्रणाली पर ही सवाल खड़ा करता है।

बजरंग दल पर भी रोक लगनी चाहिए

ज्यादातर आतंकी संगठन छुपकर अपना काम करते हैं लेकिन हमारे देश में एक संगठन खुलेआम आतंकी कामों को अंजाम दे रहा है। इंसानियत का खून करने वाले इस संगठन के बारे में अभी भी सही तस्वीर लोगों तक नहीं पहुँची है। यह सही मौका हैं कि बजरंग दल के काले कारनामों का कच्चा-चिटठा खोला जाए और उसके हत्यारे चेहरे को देश के सामने उजागर किया जाए। हम लोगों को जानना चाहिए कि धर्म की रक्षा के नाम पर यह संगठन खून बहाने में किसी सिमी या लाश्कारेतैय्ब्बा से कम नहीं हैं। पिछले महीने की २४ तारीख को कानपुर में एक प्राईवेट हॉस्टल के कमरे में विस्फोटक पदार्थ तैयार करते हुए दो लोगों के चीथड़े उड़ गए थे और दो छात्र घायल हो गए थे। पुलिस को कमरे से भारी मात्रा में विस्फोटक, हैण्ड ग्रेनेड, बने-अधबने बम, टाइम डिवाइस और डेटोनेटर समेत बम बनाने का काफी सामान मिला था। मारे गए लोगों में से एक भूपेंद्र सिंह कानपुर शहर में बजरंग दल का पूर्व नगर संयोजक था। आईजी एस एन सिंह ने साफ़ कहा कि टाइम डिवाइस मिलना इस बात का पुक्ता सबूत हैं कि विस्फोट करके सूबे में तबाही मचाने की बहुत बड़ी योजना थी। (२५ अगस्त, २००८-अमर उजाला) इस घटना ने सनसनी मचा दी हालाँकि बजरंग दल के इतिहास और विचारधारा को करीब से जानने वालों के लिए इसमे कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इस घटना की सीबीआई जाँच की मांग मुख्यमंत्री मायावती ने खारिज कर दी। इस घटना की उच्चस्तरीय जाँच अगर ईमानदारी से करवाई जाए तो और कई राज भी खुल सकते हैं। दो साल पहले भी महाराष्ट्र के नांदेड में भी बजरंग दल के एक कार्यकर्ता के घर बम बनाते हुए दो कार्यकर्ता मारे गए थे और तीन ज़ख्मी हुए थे। नांदेड के आईजी के अनुसार मोके से ज़िंदा पाइप बम हुए थे और चिंता की बात यह थी कि ज़िंदा बम आईईडी किस्म के थे जिसे रिमोट कंट्रोल से संचालित किया जा सकता हैं। सभी मृतक और आरोपी बजरंग दल के सक्रीय कार्यकर्ता थे। (९ अप्रैल २००६, मिडडे और १० अप्रैल, २००६, दी टेलीग्राफ) । यह घटनाये पुख्ता सबूत हैं कि यह संगठन हिंसक और आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न हैं। १९९९ में ऑस्ट्रलियाई पादरी ग्राहम स्टांस और उनके दो छोटे बच्चों को जिंदा ज़लाने से लेकर गुजरात में व्यापक रूप से नरसंहार को अंजाम देने का कारनामे इसी संगठन के नाम हैं। इस संगठन की घटिया और गैर इंसानी मानसिकता का पता तहलका के स्टिंग ओपरेशन से सामने आ चुका हैं जिसमे बाबु बजरंगी नामक दंगों के मुख्य आरोपी ने बेशर्मी के साथ की गयी हत्याओं का वीभत्स वर्णन किया हैं। उसने दो पत्रकारों को मारने की बात भी कैमरे के सामने कबूली थी। कभी पत्रकारों-कलाकारों को पीटना तो कभी पार्क में लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर मारना भी इसके "कर्तव्यों" में शामिल हैं। किसी भी समाज के लिए नफरत और हिंसा की राजनीति करने वाले ऐसे संगठन बहुत बड़ा खतरा हैं। पता नहीं केन्द्र सरकार को इस संगठन को प्रतिबंधित करने के लिए और कितने सबूतों के ज़रूरत है?

Wednesday, September 17, 2008

बोलीविया में गरीब-अमीर आमने-सामने

लैटिन अमेरिका का छोटा देश बोलीविया आजकल एक शानदार रंगमंच बन चुका हैं। समाज की दो विरोधी ताकतें वहां आमने-सामने हैं। प्राकृतिक गैस बहुल चार प्रान्तों के गवर्नरों ने चुनी हुई मोरालेस की सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया हैं। दरअसल मोरालेस वहां के मूल गरीब निवासियों के प्रतिनीधि के तौर पर चुनाव जीत कर आए थे। वे ख़ुद भी एक किसान ही हैं। वहां भूमी-सुधार के तहत भूमिहीन लोगों को खाली पड़ी ज़मीन देने का कानून लागू होने जा रहा हैं जो वहां के अमीर किसानो को पसंद नहीं। वैसे भी मोरालेस और उनकी पार्टी वहां के पूंजीपतियों-नौकरशाहों,कुलक फार्मरों और उनके सरपरस्त अमेरिका को फूटी आँख नहीं सुहाती। सो अमेरिका के इशारे पर चार प्रान्तों के गवर्नरों ने हाईवे जाम कर दिया उनके हथियारबंद समर्थकों ने ताज़ा सुचना मिलने तक ३० गरीब किसानों को 'सबक' सिखा दिया हैं। इतिहास अपने को दोहराता हैं लेकिन ज्यादा उन्नत धरातल पर। खाते-पीते वर्ग से कुछ छिनना सिर्फ़ संसद के ज़रिये, बिना प्रतिरोध की ताक़त जुटाए हमेशा असफल रहता हैं। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा की बोलीविया की आम जनता इस चुनोती का सामना इतिहास से सबक लेते हूए कर पायेगी या नहीं। आने वाले कुछ दिन इस देश के इतिहास के सबसे उथल-पुथल वाले होंगे इसमे कोई शक नहीं हैं।

Monday, September 15, 2008

चुनाव प्रचार का बजरंगी तरिका!

अधिवेशन ख़तम होते ही बजरंगी भाई लोगों को रोज़गार मिल गया। बाहें उपर करके लग गए चुनाव प्रचार में। सबसे पहले कई लोगों को घायल किया और नौ चर्चों को जला दिया। शायाद नरेन्द्र भाई का संदेश समझ गए थे।