Sunday, October 5, 2008

ये आरक्षण-आरक्षण क्या है?

३७,००० रुपया महीना कमाने वाला पिछड़ा कैसे है? ये सवाल मेरे मित्र कुमार विकल को विकल किए हुए था। बड़े चिंतित स्वर में बोले, ये बात तो समझ से परे है। आरक्षण विकास की दौड़ में पिछड़ गए समाज के निचले तबके के लिए था। अगर सरकार साढ़े चार लाख हर साल कमाने वाले को गरीब मानती है तो अमीर तो सिर्फ़ टाटा-अम्बानी-बिडला हुए। मैंने कहा, प्यारे यह भारतीय राजनीती का कमाल है। इस लोकतंत्र में वोट की ताक़त नोट की ताक़त की पासंग भी नहीं है। जरा देखो इस आय सीमा बढने की जहाँ कांग्रेस से लेकर पासवान, शरद यादव, उदितराज और मायावती ने तारीफ की है वहीँ किसी ने इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। कुल मिलाकर सब क्रीमी लेयर बढाये जाने के पक्ष में है। तर्क दिया जा रहा है की इससे ज्यादा लोग आरक्षण का फायदा उठा पाएंगे। विकल ने मुझे रोककर कहा, लेकिन दलित-पिछडी आबादी के गरीब तो वो माने जायेंगे न जिन्हें अर्जुनसेंगुप्ता कमेटी में देश के ८४ करोड़ लोगो द्वारा २० रुपया रोज़ कमाने वाला बताया गया था। फ़िर क्रीमी लेयर बढाने की वजह? मैंने कहा यह सही है की दलित-पिछडी आबादी के ज्यादातर गरीब २० रुपया रोज़ कमाने वाले ही है, लेकिन दरअसल ये दलित-पिछडी राजनीती की असल ताक़त नहीं है। असल ताक़त हैं इसी आबादी के उभर कर आए नेता। जो इस आबादी को भेड़ की तरह हांक कर वोट डलवा कर अपना उल्लू सीधा करती है। इन उभरे गली-मोहल्लो के नेताओं की ५-७ सालों में तिमंजिला मकान खड़े हो गए हैं, पजेरो जैसी ऊँची गाड़ी रखते है, हाथ और गले सोने के आभूषण होते है और बच्चे इंजिनीअर या मेडिकल की पढ़ाई कर रहे होते हैं। यही तबका बी एस पी , पासवान वगेरह की ताक़त है। सो इन पार्टियों के नेता इनके लिए चिंतित तो होंगे ही। आरक्षण का फायदा अच्छी हैसियत वाला दलित-पिछड़ा ही उठा सकता है। तुम क्या सोचते हो झाडू लगाने वाले छोटे-मोटे काम करने वाले बेचारे क्या खाकर आरक्षण का फायदा उठाएंगे। महान दलित चिन्तक चंद्रभान प्रसाद तो इसी बमुश्किल २ परसेंट खाते-पीते तबके के विकास को पुरी दलित आबादी के विकास मानते है। उनका कहना है जब कुछ दलित पूंजीपति बनेंगे तभी दलित-पिछडो का उद्धार होगा। तो मियां ये सारा खेल उस खाते-पीते दलित-पिछडे तबके और उनकी आने वाली पीढियों के लिए किया जा रहा है। असली गरीब तो अभी बेचारा इन्ही के पीछे घुमने के लिए मजबूर है। और तब तक घूमेगा जब तक वो दुनिया को अमीर और गरीब में बांटकर देखना नहीं सीख जाएगा। विकल को आरक्षण का खेल कुछ समझ में आया।

3 comments:

sushil jain said...

बहुत ही सही चित्रण किया आपने.

लालू, पासवान, या माय़ावती जैसों के दिल में यदि वास्तव मे़ इन गरीबों के लिये दर्द है तो ये सबसे पहले अपने पर्सनल स्टाफ मे आरक्षित् वर्ग के लिये 100% आरक्षण घोषित करे़. पी.ए. और डाक्टर से लेकर माली और रसोइये तक सभी
आरक्षित वर्ग से. किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी, और जनता में एक सकारात्मक सन्देश भी जायेगा.

स.च. कबीरपन्थी

जय पुष्‍प said...

अच्‍छा मुद्दा उठाया है कपिल। आरक्षण की असलियत से लोगों को वाकिफ कराने की जरूरत है। आरक्षण को लेकर हाय-तौबा तो बहुत मचाया जाता है लेकिन कभी यह देखने की कोशिश नहीं की जाती कि वास्‍तव में उसका लाभ किसको मिल रहा है। दलितों और पिछड़ों का उदीयमान तबका अपने फायदे के लिए आरक्षण का उपयोग तो करता है लेकिन वह स्‍वयं को गरीब दलितों और पिछड़ों के साथ जोड़कर नहीं देखता, वह जल्‍दी से जल्‍दी अमीर बनकर अगड़ों की श्रेणी में बैठ जाना चाहता है।

Kapil said...

हमारे मन का दीप खूब रौशन हो और उजियारा सारे जगत में फ़ैल जाए इसी कामना के साथ दीपावली की आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई।