कल एक पोस्ट पर इंडिया टीवी का कारनामा दिखाई पड़ा। भारतीय टीवी पत्रकारिता में इंडिया टीवी का ऐतिहासिक महत्व है। नुक्कड़-चौराहों पर बिकने वाली सस्ती मैगजीनों के र्शीषक को जिस खूबसूरती से इस टीवी ने खबर की शक्ल दी है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इसने आम लोगों की बोलचाल और लड़ाई-झगड़े की भाषा को पहली बार टीवी पर जगह दी। दिन-रात तालिबान से लेकर पाकिस्तान को जितना उसने हड़काया है इतना तो शायद बुश या ओबामा ने भी बेचारे पाकिस्तानियों को क्या हड़काया होगा। इसके तेवरों से तो यूपीए सरकार की विदेश नीति भी सहम गई है। ये इसी टीवी का कमाल है कि भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र के प्राचीन भारतीय ज्ञान को टीवी पर पेश किया गया। वैसे इस टीवी की ज्यादातर खबरें खबरें होती ही नहीं है, मतलब ज्यादातर एक्सक्लूजिव खबरें होती हैं। अभी माइकल जैक्सन की मौत पर खबर आई कि उसका पुनर्जन्म हो चुका है। फिर खबर आई कि माइकल नहीं उसका हमशक्ल मारा गया है। ऐसी कल्पनाशक्ति किसी भारतीय टीवी चैनल हो तो मुकाबला कर लें। बहरहाल इंडिया टीवी के बारे में चंद लाइनें पेश हैं इंडिया टीवी की ही शैली में। (आवाज की शैली ध्यान में रखकर इसका पठन-पाठन किया जाए)।
खबरदार इंडिया टीवी!
सनसनी मत फैलाओ!
टीवी दर्शकों का उल्लू मत बनाओ!
भारतीय दर्शक अब जाग रहा है!
होश में आओ इंडिया टीवी!
क्या इंडिया टीवी फिल्मी कलियां को पीछे छोड़ सकता है!
जानिए आज रात 11.30 बजे!
Sunday, July 5, 2009
Thursday, July 2, 2009
लिब्राहन रिपोर्ट पर कुछ स्वीकारोक्तियां
- मैंने ढांचा तोड़ने के लिए नहीं कहा था।
- मैंने भी नहीं कहा था।
- मैंने भड़काऊ भाषण दिया था पर कहा मैंने भी नहीं था।
- अजी, मैं तो जेल भी हो आया। पर कहा मैंने भी नहीं था।
- उस वक्त हालात पर हमारा नियंत्रण नहीं था।
- कार्यकर्ता बेकाबू हो गये थे जनाब।
- देखिए, मैं तो उस वक्त रो रहा था।
- ये कांग्रेस की साजिश है।
- गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं मिलेगा।
- उस समय जो हुआ वह जनभावनाएं थीं।
- वह एक दुर्भाग्यशाली पल था।
- अतीत को भुला दिया जाना चाहिए।
- अरे महाराज, पांच साल कुर्सी तक तो पहुंचा दिया उस ढांचे ने। अब छोड़िए भी।
- मैंने भी नहीं कहा था।
- मैंने भड़काऊ भाषण दिया था पर कहा मैंने भी नहीं था।
- अजी, मैं तो जेल भी हो आया। पर कहा मैंने भी नहीं था।
- उस वक्त हालात पर हमारा नियंत्रण नहीं था।
- कार्यकर्ता बेकाबू हो गये थे जनाब।
- देखिए, मैं तो उस वक्त रो रहा था।
- ये कांग्रेस की साजिश है।
- गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं मिलेगा।
- उस समय जो हुआ वह जनभावनाएं थीं।
- वह एक दुर्भाग्यशाली पल था।
- अतीत को भुला दिया जाना चाहिए।
- अरे महाराज, पांच साल कुर्सी तक तो पहुंचा दिया उस ढांचे ने। अब छोड़िए भी।
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Wednesday, July 1, 2009
एमसीडी के 45,000 कर्मचारी कम नहीं 2,000 ज्यादा हैं
कल की खबर से एमसीडी में हडकम्प था कि 45,000 कर्मचारी अगर नहीं हैं तो उनकी तनख्वाह कौन ले रहा है? लेकिन आज अधिकारियों और सुपरवाइजरों ने वह कारनामा कर दिखाया जो युगों-युगों तक याद रखा जाएगा। आज दोपहर तक की हाजिरी के बाद पता चला है कि 45,000 कर्मचारी तो रातों-रात अचानक अवतरित हो ही गये हैं बल्कि 2,000 कर्मचारी ज्यादा पाये गये।
आज अगर आपने सड़कों पर गौर किया हो तो एमसीडी के ढेरों कर्मचारी काम करते हुए दिखाई दिये होंगे। दरअसल कल की खबर के बाद एमसीडी के सुपरवाइजर और अधिकारी परेशान थे कि फर्जी कर्मचारियों का मामला मुसीबत बन सकता है। सो आनन-फानन में कर्मचारी पैदा किये गये (खबर है कि कई नाते-रिश्तेदारों को और दिहाड़ी पर मजदूरों को रखकर संख्या पूरी की गई)। खैर 45,000 कर्मचारी तो पूरे हो गये लेकिन इस जल्दबाजी में कुछ ज्यादा ही इंतजाम हो गया और संख्या 45,000 गायब कर्मचारियों से ऊपर पहुंच गयी। अब एमसीडी के कर्ताधर्ता फिर परेशान हैं कि कल तक इतने ज्यादा कम थे अब ज्यादा हो गये। खबर है कि फिलहाल एक उच्च स्तरीय बैठक में पहले आपस में ही एक-दूसरे की गिनती की जा रही है ताकि कम से कम उच्चस्तर पर तो एक सही संख्या बताई जा सके। इधर सुपरवाइजरों और अधिकारियों के सामने समस्या यह है कि आज तो गिनती पूरी कर ली। लेकिन आगे क्या होगा...। सफाई कर्मचारी भी इस बार काफी खुश हैं। भ्रष्ठ सुपरवाइजरों और अधिकारियों की वजह से एक तो उन्हें काम ज्यादा करना पड़ता था और सारी मुसीबत भी उन्हीं पर आती थी। वैसे उनका यह भी कहना कि इस सबसे अब असली और पात्र लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद की जानी चाहिए।
पर एमसीडी में जो न हो जाए कम है। आगे देखते हैं क्या होगा। वैसे देखते रहिए जो भी होगा मजेदार ही होगा...
आज अगर आपने सड़कों पर गौर किया हो तो एमसीडी के ढेरों कर्मचारी काम करते हुए दिखाई दिये होंगे। दरअसल कल की खबर के बाद एमसीडी के सुपरवाइजर और अधिकारी परेशान थे कि फर्जी कर्मचारियों का मामला मुसीबत बन सकता है। सो आनन-फानन में कर्मचारी पैदा किये गये (खबर है कि कई नाते-रिश्तेदारों को और दिहाड़ी पर मजदूरों को रखकर संख्या पूरी की गई)। खैर 45,000 कर्मचारी तो पूरे हो गये लेकिन इस जल्दबाजी में कुछ ज्यादा ही इंतजाम हो गया और संख्या 45,000 गायब कर्मचारियों से ऊपर पहुंच गयी। अब एमसीडी के कर्ताधर्ता फिर परेशान हैं कि कल तक इतने ज्यादा कम थे अब ज्यादा हो गये। खबर है कि फिलहाल एक उच्च स्तरीय बैठक में पहले आपस में ही एक-दूसरे की गिनती की जा रही है ताकि कम से कम उच्चस्तर पर तो एक सही संख्या बताई जा सके। इधर सुपरवाइजरों और अधिकारियों के सामने समस्या यह है कि आज तो गिनती पूरी कर ली। लेकिन आगे क्या होगा...। सफाई कर्मचारी भी इस बार काफी खुश हैं। भ्रष्ठ सुपरवाइजरों और अधिकारियों की वजह से एक तो उन्हें काम ज्यादा करना पड़ता था और सारी मुसीबत भी उन्हीं पर आती थी। वैसे उनका यह भी कहना कि इस सबसे अब असली और पात्र लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद की जानी चाहिए।
पर एमसीडी में जो न हो जाए कम है। आगे देखते हैं क्या होगा। वैसे देखते रहिए जो भी होगा मजेदार ही होगा...
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