आजकल एक बुखार पूरी दुनिया में चल रहा है। ओबामा वायरल। पूरी दुनिया में अमेरिका के नये राष्ट्रपति को बदलाव के नये मसीहा के रूप में दिखाने की कोशिश की जा रही है। कोई उन्हें दलितों-पिछड़ों का विश्व प्रतिनिधि बता रहा है तो कोई 'समाजवादी' विचारों वाला प्रगतिशील नेता। मीडिया से लेकर प्रबुद्ध तबका भी गदगद है। हालांकि असलियत कुछ और है। ओबामा की लोकप्रियता की एक वजह उनका अश्वेत होना है। जबकि अमेरिका के अश्वेत आंदोलन यानी मार्टिन लूथर किंग की विरासत से उनका कोई लेना-देना कभी नहीं रहा। उन्होंने अश्वेतों के किसी आंदोलन को समर्थन या उसमें शिरकत नहीं की। बहुत लोगों को हैरानी होगी लेकिन आजकल अपने बयानों से एकदम उलट ओबामा ने अमेरिकी सीनेट में कभी किसी भी युद्ध प्रस्ताव का विरोध नहीं किया। 2002 के कुख्यात पेट्रियट एक्ट 2 के मुखर समर्थक भी वे थे। उन्होंने इरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित करने का काफी विरोध प्रकट किया था। इस चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने स्टाफ को किसी मुस्लिम वेशभूषा से बचने का सख्त आदेश दिया था। ओबामा अफगानिस्तान में युद्ध में तेजी और पाकिस्तान पर हमलों के हिमायती हैं। मक्कैन के चुनाव खर्चे के 2600 अंशदानकर्ता सीईओ थे जबकि ओबामा के 6,000। ओबामा को वाशिंगटन की ताकतवर लॉबी, संचार, इलेक्ट्रानिक, हेल्थकेयर, न्यूक्लियर और दवा उद्योग ने भारी पैसा देकर जिताया है। जाहिर है इसकी कीमत भविष्य में वसूली जाएगी। ओबामा के बारे में और भी कई तथ्य आज के हिन्दू में एजाज अहमद साहब के लेख 'ओबामा प्रेसीडेंसी एण्ड सम क्वेश्चन मार्क्स' में दिये गये हैं।
असल में ओबामा ने बड़ी चालाकी से अपने आपको अश्वेत आंदोलन की विरासत से जोड़ लिया। उन्होंने अपने मुसलमान होने का भी फायदा अपनी छवि बनाने में उठाया। उनके हालिया बयान या विदेश नीति में नरम रूख उनकी प्रगतिशीलता की नहीं अमेरिका के संकट में पड़े पूंजीपति वर्ग की मजबूरी है। दुनिया को ओबामा को उनके असली चेहरे के साथ समझना चाहिए न कि बनाई जा रही और पेश की जा रही छवि के आधार पर।
Tuesday, November 18, 2008
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